bank cheque bounce: आज के समय में चेक का उपयोग पैसों के लेन-देन में बहुत आम हो गया है। लेकिन जब कभी चेक बाउंस हो जाता है तो यह एक गंभीर कानूनी समस्या बन जाती है। चेक बाउंस तब होता है जब बैंक खाते में पर्याप्त राशि नहीं होती या फिर किसी तकनीकी कारण से चेक क्लियर नहीं हो पाता। भारतीय कानून के अनुसार चेक बाउंस होना एक दंडनीय अपराध माना जाता है।
चेक बाउंस होने के कई कारण हो सकते हैं जिनमें खाते में अपर्याप्त राशि सबसे मुख्य कारण है। इसके अलावा हस्ताक्षर का मेल न खाना, चेक पर गलत तारीख लिखना, चेक में कटाव या सुधार करना भी चेक बाउंस के कारण बन सकते हैं। कभी-कभी तकनीकी खराबी या बैंक की गलती से भी चेक बाउंस हो सकता है।
चेक बाउंस होने पर तुरंत की जाने वाली कार्रवाई
जब किसी का चेक बाउंस होता है तो बैंक तुरंत चेक प्राप्तकर्ता को इसकी जानकारी देता है। बैंक एक विशेष रसीद जारी करता है जिसमें चेक बाउंस होने का सटीक कारण भी लिखा होता है। यह रसीद बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज है क्योंकि आगे की सभी कानूनी कार्रवाई इसी के आधार पर की जाती है। चेक प्राप्तकर्ता को इस रसीद को सुरक्षित रखना चाहिए।
बैंक की इस रसीद के आधार पर चेक प्राप्तकर्ता चेक देने वाले व्यक्ति को पहला नोटिस भेजता है। इस नोटिस में चेक बाउंस होने की जानकारी और राशि का भुगतान करने की मांग की जाती है। यह पहला कदम है जो कानूनी कार्रवाई शुरू करने से पहले उठाया जाता है।
राशि भुगतान के लिए दिया जाने वाला समय
चेक बाउंस होने पर चेक देने वाले व्यक्ति को राशि का भुगतान करने के लिए पहले एक महीने का समय दिया जाता है। यह समय पहले नोटिस मिलने के बाद से गिना जाता है। अगर इस एक महीने के अंदर राशि का भुगतान नहीं किया जाता तो चेक प्राप्तकर्ता कानूनी नोटिस भेज सकता है। यह पहला अवसर है जब चेक देने वाला व्यक्ति बिना किसी कानूनी परेशानी के अपनी गलती सुधार सकता है।
इस एक महीने के दौरान चेक देने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह तुरंत राशि का भुगतान करे और मामले को सुलझा ले। देरी करने से स्थिति और भी जटिल हो जाती है और कानूनी कार्रवाई अवश्यंभावी हो जाती है।
कानूनी नोटिस और उसके परिणाम
अगर पहले नोटिस के बाद एक महीने में राशि का भुगतान नहीं होता तो चेक प्राप्तकर्ता कानूनी नोटिस भेजता है। यह नोटिस बहुत गंभीर होता है और इसके मिलने के बाद केवल 15 दिन का समय और मिलता है। इन 15 दिनों में राशि का भुगतान करना अनिवार्य है वरना अदालत में मामला दर्ज हो जाता है। कानूनी नोटिस की अनदेखी करना बहुत महंगा पड़ सकता है।
यदि इन 15 दिनों में भी राशि का भुगतान नहीं किया जाता तो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत अदालत में मामला दर्ज हो जाता है। इसके बाद कानूनी प्रक्रिया शुरू हो जाती है जो लंबी और महंगी होती है।
सजा और जुर्माने के प्रावधान
चेक बाउंस के मामले में धारा 138 के तहत दो साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। अदालत अपने विवेक से किसी भी प्रकार की सजा दे सकती है। कई बार केवल जुर्माना लगाया जाता है तो कभी कैद की सजा भी दी जाती है। इसके अलावा चेक की मूल राशि पर ब्याज भी चुकाना पड़ सकता है जिसकी दर अदालत तय करती है।
चेक बाउंस का मामला स्थानीय अदालत में ही दर्ज किया जाता है। यह सुविधाजनक है क्योंकि चेक प्राप्तकर्ता को दूर जाकर मामला दर्ज नहीं करना पड़ता। अदालती कार्रवाई में समय लगता है लेकिन न्याय जरूर मिलता है।
बैंक पेनाल्टी और अन्य शुल्क
चेक बाउंस होने पर बैंक भी अपनी तरफ से पेनाल्टी लगाता है। यह पेनाल्टी चेक देने वाले के खाते से अपने आप कट जाती है। विभिन्न बैंकों में यह पेनाल्टी अलग-अलग होती है लेकिन आमतौर पर यह काफी ज्यादा होती है। इसके अलावा चेक की वैधता केवल तीन महीने की होती है इसलिए समय पर चेक को भुनाना जरूरी है।
चेक का उपयोग करते समय हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए और खाते में पर्याप्त राशि रखनी चाहिए। चेक देते समय सभी जानकारी सही और स्पष्ट रूप से भरनी चाहिए ताकि बाद में कोई समस्या न हो।
Disclaimer
यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। किसी भी कानूनी समस्या के लिए योग्य वकील से सलाह लेना आवश्यक है। कानून में समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं इसलिए नवीनतम जानकारी के लिए संबंधित अधिकारियों से संपर्क करें।